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NCERT Solution For Class 9 Hindi Chapter 8 ‘दोहे’- रहीम [2021-22]

 NCERT Solution For Class 9 Hindi Chapter 8 ‘दोहे’- रहीम [2021-22]

‘दोहे’ रहीम

कक्षा 9 स्पर्श भाग-1 [पाठ - 8 “दोहे”]

यहाँ हम हिंदी कक्षा 9 ''स्पर्श - भाग 1'' के काव्य खण्ड पाठ 8 दोहेके पाठ प्रवेश, पाठ सार, पाठ व्याख्या, अतिरिक्त प्रश्न और NCERT पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर इन सभी बारे में जानेंगे ..

 

By Apani Bhasha

पाठ क्रम

प्रथम भाग

1) पाठ प्रवेश

2) पाठ सार

3) पाठ की व्याख्या

 

दूसरा भाग  👈

4) MCQ प्रश्न

5) अतिरिक्त प्रश्न

6) प्रश्न अभ्यास


कवि परिचय

कवि - रहीम

जन्म - 1556   मृत्यु - 1626


 प्रथम भाग 

1) पाठ प्रवेश

प्रस्तुत पाठ में दिए गए दोहे रहीम जी द्वारा लिखित हैं| ये दोहे हमें नैतिकता की सीख देते है| यह दोहे हमें दूसरों के साथ कैसा बरताव करना चाहिए, इसकी शिक्षा देते हैं, उसके साथ ही जीवन में करणीय और अकरणीय आचरण की भी सलाह देते है| रहीम के दोहे आसानी से याद रह जाते हैं| विशिष्ट स्थिति में इन दोहों का याद आना लजमी है|

 

2) पाठ सार

यहाँ रहीम जी के ग्यारह दोहे दिए गए हैं| इन दोहों के माध्यम से रहीम जी हमें नैतिकता की शिक्षा देते है| रहीम कहते है कि हमें प्रेम का धागा यू ही जल्दी में नहीं तोड़ना चाहिए| प्रेम का धागा एक बार टूट गया तो वह फिर से पहले जैसा नहीं हो सकता| जुड़ भी गया तो भी उसमें गाँठ रह जाती है अर्थात रिश्ते में मनमुटाव रह जाता है| रहीम जी आगे कहते है कि, हमारे मन के दुख हमारे मन में ही रखने चाहिए| दूसरों को बताने से लोग हमारे दुख बाँट तो नहीं लेते बल्कि मजाक उड़ाते है| हमारे जीवन का एक ही लक्ष्य होना चाहिए| चित्रकूट एक ऐसी जगह है जहाँ जाने से हमारी विपदा समाप्त हो जाती है| दोहे में अक्षर भले ही कम हो पर उसमें विशाल अर्थ समाहित होता है| दूसरों को सहायता करने वाला ही महान होता है| किस बात पर खुश होने पर उसकी प्रशंसा जरूर करनी चाहिए अथवा उसे पुरस्कार, इनाम भी देना मनुष्य का धर्म है| यदि मनुष्य ऐसा नहीं करता तो वह पशु से भी खराब है| हमें सोच समझकर बात करनी चाहिए| बड़ों को देखकर छोटों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए| दोनों का महत्व अलग-अलग होता है| दोनों को समान नजर से देखना आवश्यक है| कठिन परिस्थिति आने पर कोई मदत नहीं करता| अपने पास खुद की संपत्ति है तो विपदा के समय वह हमारे काम आएगी| जीवन में सबसे महत्वपूर्ण पानी है, पानी के बिना मनुष्य का जीवन संभव नहीं है|

 

3) पाठ की व्याख्या

 

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।

टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।।

व्याख्या – इस दोहे के माध्यम से रहीम जी कहते है कि, हमें स्नेह के बंधन को यू ही तोड़ना नहीं चाहिए, स्नेह का बंधन एक बार टूटने पर फिर से पहले की भाँति नहीं जुड़ पाता| अगर किसी कारण जुड़ भी गया तो भी उसमें मनमुटाव रह ही जाता है|

 

रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।

सुनि अठिलैहैं लोग सब बाँटि न हैं कोय।।

व्याख्या – रहीम जी इस दोहे के माध्यम से कहते है कि, हमारे मन की व्यथा हमारे मन में ही रखनी चाहिए| अगर हम वह दूसरों के सामने बयान करते है तो लोग हमारे दुख सुनकर उसे कम तो नहीं करते बल्कि हमारा मजाक उड़ाते है| इसलिए दुखों को मन में ही रखिए|

   

एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।

रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय॥

व्याख्या – रहीम जी इस दोहे के माध्यम से कहते है कि, हमारे जीवन का लक्ष्य एक ही होना चाहिए| हम अगर सभी और ध्यान देंगे तो हमसे एक भी लक्ष्य पूरा नहीं होगा| उदाहरण के तौर पर रहीम कहते है- हमें अगर फल-फूल चाहिए तो पेड़ की जड़ों के पास ही पानी की सिंचाई होनी चाहिए ना कि पेड़ के पत्तों एवं फूलों को|

 

चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस।

जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस।।

व्याख्या – इस दोहे के माध्यम से रहीम जी कहते है कि जब श्री राम जी को वनवास मिला था तो वे चित्रकूट पर आकार रहने लगे थे| वैसे तो यह जगह घने जंगल के कारण रहने योग्य बिल्कुल नहीं है| इस प्रकार की भयावह जगह पर वही रहने जा सकता है जिस पर भारी विपत्ति आई है| कहने का तात्पर्य यह है कि विपत्ति में मनुष्य साहस भरे कदम भी उठता है|

 

दीरघ दोहा अरथ के आखर थोरे आहिं ।

ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिटि कूदि चढ़ि जाहिं।।

व्याख्या – रहीम जी इस दोहे के माध्यम से कहना चाहते है कि, दोहा छंद काव्य में दो ही पंक्तियाँ होती है अर्थात उस काव्य में कम अक्षर होते है, शब्दों की संख्या कम रहती है पर उसमें विशाल अर्थ समाहित होता है| यह बात समझते हुए रहीम कहते है जिस प्रकार कलाकार करतब दिखते समय अपने शरीर को सिमट कर कुंडली बनाता है तब उसका शरीर छोटा लगने लगता है| कहने का तात्पर्य यह है कि किसी के आकार को देखकर हमें उसके शक्ति का अंदाजा नहीं लगाना चाहिए|

 

धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पिअत अघाय।

उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय।।

व्याख्या – रहीम जी कीचड़ में पाए जाने वाले पानी को धन्य मानते है क्योंकि वह छोटे-छोटे जीवों की प्यास बुझता है| समुद्र इतना विशाल होने के बावजूद भी वह कसी की प्यास नहीं बुझा सकता| कहने का तात्पर्य यह है कि, जो दूसरों की सहायता करता है वहीं महान होता है|

 

नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत ।

ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू न देत ।।

व्याख्या – रहीम जी कहते है कि, संगीत पर मोहित होकर हिरण जंगल से बाहर आती है और शिकारी उसका शिकार कर लेते है| अर्थात संगीत के लिए वह अपने शरीर को न्योछावर कर देती है| इस प्रकार कुछ लोग भी किसी बात पर खुश होते है तो उसे धन (पैसा) दे देते है| लेकिन कुछ लोग जानवरों से भी बदतर होते है जो दूसरों से बहुत कुछ (खुशी, आनंद, मजा) लेते तो है लेकिन बदले में कुछ नहीं देते| कहने का तात्पर्य यह है कि यदि हम किसी से कुछ ले रहे है तो बदले में उसे भी कुछ न कुछ देना चाहिए|

 

बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।

रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।

व्याख्या – रहीम जी इस दोहे के माध्यम से कहना चाहते है कि, हमें सोच-समझकर बात करनी चाहिए क्योंकि एक बार अगर हमारी बात बिगड़ जाती है तो लाख प्रयासों के बावजूद भी हम उसे सुधार नहीं सकते| जिस प्रकार दूध एक बार फट गया तो उससे हम मक्खन नहीं बना सकते| कहने का तात्पर्य यह है कि हमें सोच-समझकर बात करनी चाहिए| गलती से भी बुरे शब्दों का प्रयोग हमारी बात में नहीं आना चाहिए|

 

रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।

जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।।

व्याख्या – रहीम जी इस दोहे के माध्यम से हमें समानता का संदेश देते है| बड़ों की चमक-धमक देखकर हमें छोटों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए| गरीब और अमीर को समानता की नजर से देखना चाहिए| जहाँ सुई का काम होता है वहाँ तलवार का कोई मोल नहीं| कहने का तात्पर्य यह है कि हर एक का अपना-अपना महत्व होता है|

 

रहिमन निज संपति बिना, कोउ न बिपति सहाय|

बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सके बचाय।।

व्याख्या – इस दोहे के माध्यम से रहीम जी धन संचय की तरफ इशारा करते है| हमें धन संचय की आदत होनी चाहिए| कठिन परिस्थिति आने पर कोई मदद नहीं करता| अपने पास खुद की संपत्ति है तो विपदा के समय वह हमारे काम आएगी| रहीम कहते है कि कमल के पास खुद की संपत्ति (पानी) ना होने के कारण केवल सूर्य की रोशनी उसे नहीं बचा सकती| कहने का तात्पर्य यह है कि धन का संभालकर प्रयोग करना चाहिए तथा संचय भी करना चाहिए| मुसीबत के समय में वही धन हमारे काम आता है|

  

रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून|

पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून।।

व्याख्या – प्रस्तुत दोहे में रहीम जी ने तीन अर्थ में पानी का प्रयोग किया है| एक मनुष्य के लिए पानी का अर्थ है मनुष्य का आत्म-सम्मान, मोती के लिए पानी का अर्थ है चमक या आभा तथा चुन अर्थात आटे के लिए पानी का अर्थ है जल| रहीम जी कहते है - आत्म-सम्मान के बिना मनुष्य का जीवन व्यर्थ है| चमक के बिना मोती की कोई कीमत नहीं, तथा जल के बिना आटा बेमतलब है| कहने का तात्पर्य यह है कि आत्म-सम्मान, चमक तथा जल रूपी (तीनों रूपों में) पानी हमारे पास होना चाहिए|

 


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4) MCQ प्रश्न

5) अतिरिक्त प्रश्न

6) प्रश्न अभ्यास

 

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