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Agnipath Poem Summary in Hindi | अग्निपथ - कविता का भावार्थ |



CBSE Class 9 – हिंदी

अग्निपथ

कवि – हरिवंशराय बच्चन (1907 – 2003) 

अग्निपथ -  कविता का भावार्थ

Agnipath Poem Summary in Hindi

 

By Apani Bhasha   

 

कविता

अग्निपथ ! अग्निपथ ! अग्निपथ !
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने, हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी माँग मत, माँग मत, माँग मत!
अग्निपथ ! अग्निपथ ! अग्निपथ !

 

तू न थकेगा कभी!
तू न थमेगा कभी!
तू न मुड़ेगा कभी! कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ!
अग्निपथ ! अग्निपथ ! अग्निपथ !

 

यह महान दृश्य है
चल रहा मनुष्य है

अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ
अग्निपथ ! अग्निपथ ! अग्निपथ !


 अग्निपथ कविता का भावार्थ

 

अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने, हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी माँग मत, माँग मत, माँग मत!
अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!

 

शब्दार्थ :-

अग्निपथ – आग युक्त मार्ग (कठिनाइयों भरा जीवन मार्ग)

वृक्ष – पेड़ (मदद करने वाले लोग)

घने – ज्यादा मात्रा में

बड़े – आकार से विशाल (अमीर)

एक पत्र छाँह  - एक पन्ने की छाया (थोड़ी-सी मदद)


भावार्थ : कवि हरिवंशराय बच्चन जी ने कविता की इन पंक्तियों द्वारा मनुष्य को सचेत किया है| कवि कहना चाहते है कि हर एक के जीवन का मार्ग दुखों से भरा हुआ रहता है, जीवन है तो दुख जरूर रहेंगे| इस जीवन पथ पर चलना है तो कर्म करते रहना जरूरी हैं| जीवन की अनंत कठिनाइयों का सामना करते हुए चलते रहना है| रास्ते में आनेवाली हर मुसीबत को झेलते हुए अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ना है| इन मुसीबतों का सामना करते समय अग्निपथ पर आप को अपने सगे संबंधी, स्नेही तथा मित्र सहायता देने जरूर आएंगे पर हमें उनकी सहायता को कभी स्वीकार नहीं करना हैं बल्कि अपनी आत्मिक शक्ति से हमें उन कठिनाई का समान करना है| हमें किसी की मदद नहीं लेनी है| दूसरों की मदद से हम कमजोर पड़ जाएंगे| संकट का मुकाबला करने की शक्ति हम में नहीं रहेगी|  इसलिए कवि ने कहा है कि, जीवन पथ पर चलते हुए बहुत बड़े बड़े और घने पेड़ (मदद करने वाले लोग) आप को नजर आएंगे पर उनकी छाह में हमें नहीं रकना है| हमें बस अपने लक्ष्य की तरफ बिना रुके बढ़ते रहना है|

**

तू न थकेगा कभी!
तू न थमेगा कभी!
तू न मुड़ेगा कभी! कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ!
अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!

 

शब्दार्थ :-

थकना – लगातार मेहनत के कारण कमजोरी महसूस करना

थमना – थककर रुक जाना

मुड़ना – संकटों को घबराकर पीछे भाग जाना

शपथ – कसम, सौगंध

भावार्थ : कवि हरिवंशराय बच्चन जी ने कविता की इन पंक्तियों द्वारा मनुष्य से कहा है कि, चाहे अपने जीवन का रास्ता कितना ही मुश्किल क्यों न हो पर हमें उस रास्ते पर चलते समय कभी-भी थकना नहीं है| अपने कर्म की पूजा करते हुए आगे बढ़ना है| संकट भले ही हमें परेशान करें, बेचैन करें पर हमें संकटों को डरकर रुकना नहीं है और ना ही उन संकटों को घबराकर पीछे मुड़ना है| कवि आगे मनुष्य को अपने कठिनतम जीवन मार्ग पर चलते हुए कभी-भी न थकने की, कभी-भी न रुकने की तथा कभी न मुड़ने की कसम लेने के किए कहते हैं|

***

यह महान दृश्य है
चल रहा मनुष्य है
अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ
अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!

शब्दार्थ :-

महान – बडा, आदर्श

चल रहा मनुष्य है – मनुष्य अपने कर्म में मग्न है

अश्रु – आँसू

स्वेद – पसीना

रक्त – खून

 

भावार्थ : कवि हरिवंशराय बच्चन जी ने कविता की इन पंक्तियों द्वारा यह बताने के प्रयास किया है कि, मनुष्य जब अपने कर्म पथ पर सवार रहता है तो उसे बहुत सारे संकटों का, समस्याओं का सामना करना पड़ता हैं| इन समस्याओं का सामना करते-करते मनुष्य पूरी तरह से थक जाता है| उसे कड़ी मेहनत के कारण पसीना आता है, कभी-कभी तो ऐसी स्थिति आती है कि वह आँसू से, एवं खून से लथ-पथ होकर भी अपने कर्म के रास्ते पर आगे बढ़ता ही रहता है। अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ने वाले तथा कर्म ने मग्न मनुष्य को देखना एक अद्भुत अनुभव है|

इसीलिए कवि ने इस अनुभव को एक महान दृश्य कहा है। कवि के अनुसार कठिनाइयों का सामना करते हुए बिना थके, बिना रुके सच्चे रास्ते पर चलने से ही मनुष्य अपनी ज़िंदगी के लक्ष्य को हासिल कर सकता है।

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विडिओ देखे 👉 'अग्नि पथ' - हरिवंशराय बच्चन 



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