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NCERT Solutions For Class 9 Hindi 'अब कैसे छूटे राम नाम रट लगी..', 'ऐसी लाल तुझ बिनु..' [2021-22]

 

NCERT Solutions For Class 9 Hindi 'अब कैसे छूटे राम नाम रट लगी..', ऐसी लाल तुझ बिनु..'  [2021-22]

 

पद ..

अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।

प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग-अँग बास समानी।

प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा।

प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती।

प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।

प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा

 

भावार्थ :- उपर्युक्त पद संत रैदास जी द्वारा लिखित है| इन पदों से रैदास जी की दास्य भक्ति प्रस्तुत होती है| इस पद के मध्यम से रैदास जी कहते है कि, मुझे राम नाम की रट लगी है और अब वह छूटने वाली नहीं है| पदों के माध्यम से रैदास जी ने अपने आराध्य के साथ खुद की तुलना की है| उनका मानना है कि, ईश्वर कहीं बाहर मंदिर या मस्जिद में नहीं बल्कि अपने अंतस में विराजमान है| इसलिए वह अपने प्रभु के साथ बात करके उन्हें अलग-अलग रूप लेने के लिए कहकर स्वयं भी प्रभु के उन रूपों के साथ जुड़ना चाहते हैं|

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प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग-अँग बास समानी।

      रैदास जी प्रभु को अर्थात ईश्वर को चंदन बनने के लिए कहकर स्वयं पानी बनना चाहते है| इसका तात्पर्य यह है कि जब प्रभु चंदन बनेंगे तो पानी के साथ घिसे जाएंगे तो पानी में चंदन की सुगंध घुल-मिल जाएगी (पानी के अँग-अँग को चंदन की सुगंध लग जाएगी)| इसी प्रकार रैदास जी प्रभु के भक्ति में घुल-मिल जाना चाहते हैं|

 

प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा।

      इस पंक्ति से रैदास जी ईश्वर को घन अर्थात बदल बनने के लिए कहकर खुद मोर बनना चाहते हैं और उस चकोर की तरह (जो अपने चाँद को देखकर खुद की प्यास बुझाता है) अपने ईश्वर को देखना चाहते हैं| 

 

प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती।

      इस पंक्ति से रैदास जी ईश्वर को दीपक बनने के लिए कहकर खुद उस दीपक की बाती बनना चाहते हैं| जिस प्रकार वह बाती दीपक के साथ दिन-रात जलती रहती है उसी प्रकार रैदास जी भी अपने ईश्वर के भक्ति में दिन-रात अपना जीवन बिताना चाहते हैं| अर्थात रैदास जी दिन-रात ईश्वर की भक्ति करना चाहते हैं|

 

प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।

      इस पंक्ति के माध्यम से रैदास जी प्रभु को मोती बनने के लिए कहकर वे खुद धागा बनना चाहते हैं| जिस प्रकार धागा मोती के अंदर पिरोया जाता है, उसी प्रकार रैदास जी भी अपने आराध्य के ह्रदय में खुद को पिरोना चाहते हैं| रैदास जी आगे कहते है कि अगर ऐसा हो गया तो ‘सोने पे सुहागा’ हो जाएगा|

प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा

      पद की अंतिम पंक्ति में रैदास जी कहते है कि हे प्रभु तुम मेरे स्वामी अर्थात मालिक हो और मैं तुम्हारा दास अर्थात सेवक हूँ| इस प्रकार की दास्य भक्ति मैं करता हूँ|

      इस प्रकार रैदास जी इस पद के माध्यम से अपने आराध्य से नजदीकी बनाकर उनके भक्ति में तल्लीन होना चाहते हैं|

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ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै

गरीब निवाजु गुसईआ मेरा माथै छत्रु धरै ।।

जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै

नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते डरै।।

नामदेव कबीरु तिलोचनु सधना सैनु तरै

कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरिजीउ ते सभै सरै ।।

 

भावार्थ :- रैदास जी अपने दूसरे पद के माध्यम से अपने आराध्य का गुणगान करते हैं| उनकी महानता का वर्णन करते हुए वे कहते है कि इस प्रकार का महान कार्य हे प्रभु! तुम्हारे बिना कोई नहीं कर सकता| तुम ही गरीबों के उद्धारकर्ता हो और मुझपर आपकी ही कृपादृष्टि रहती है| निम्न जाती में पैदा होने के कारण पूरी दुनिया के नजर में हम खटके है, हम अछूत माने जाते है, परंतु हमारी हालत देखकर तुम ही हो जो द्रवित होते हो| रैदास जी आगे कहते है कि मेरा प्रभु ही है जो निम्न जाती में जन्मे लोगों को सम्मानित करने का काम करता हैं और इस प्रकार का काम करते हुए मेरा प्रभु किसी से भी नहीं डरता| मेरे प्रभु ने नामदेव, कबीर, तिलोचन, सधना, सेना महाराज आदि लोगों का उद्धार किया है| रैदास जी अंतिम पंक्ति में कहते है कि, हे संतजन आप मेरी बात ध्यान से सुनो – ईश्वर भक्ति करने वालों का उद्धार जरूर होगा| वे इस जन्म मरण के फेरे से मुक्ति पा लेंगे|

      इस प्रकार से रैदास जी ने अपने आराध्य की महानता बताते हुए वे किस प्रकार सबसे श्रेष्ठ है यह इन पदों के माध्यम से बताया है|

उद्देश्य :- पाठक के मन में ईश्वर भक्ति की लौ जालना|

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प्रश्न 1. उचित विकल्प का चयन कीजिए|

1) रैदास जी को किस नाम की रट लगी है?

) प्रभु नाम की                                    ) राम नाम की

) ईश्वर नाम की               ) भगवान नाम की

2) रैदास जी स्वयं को पानी कहकर प्रभु को क्या संबोधित करते है?

) स्वामी                                 ) मोती

) दीपक                                  ) चंदन

3) रैदास जी मोर बनकर प्रभु को किस प्रकार देखने की बात करते है?

) जैसे बेटा अपनी माँ को देखता है|

) जैसे चिड़िया अपने घोंसले को देखती है|

) जैसे चकोर चाँद को देखता है|

) जैसे चकोर सूरज को देखता है|

4) रैदास जी प्रभु को दीपक मानकर खुद क्या बनना चाहते है?

) बाती                                   ) पाती

) माटी                                    ) बात

5) 'सोनहिं मिलत सुहागा' इस उक्ति का अर्थ क्या है?

) ईश्वर के समान सोना मिलता है|

) अच्छी बात में और अच्छी बात होना|

) अच्छी बात में बुरी बात होना

) बुरी बात में अच्छी बात होना|

6) रैदास जी ने स्वामी किसे कहा है?

) अपने राजा को                     ) अपने सेनापति को

) अपने ईश्वर को                    ) अपने पिता को

7) दूसरे पद में रैदास जी ने गरीब निवाजु किसे कहा है?

) गरीब ब्राह्मण को                ) गरीब लोगों को

) अपने ईश्वर को                    ) अपने गुरू को

8) रैदास जी के ईश्वर भक्तों के लिए क्या काम करते है?

) नीच जाती वाले भक्त को उच्च बनाता है|

) उच्च जाती वाले भक्तों को नीच बनाता है|

) गरीबों को प्रसन्न होता है|                

) अमीरों को प्रसन्न होता है|

9) पद के अनुसार रैदास जी के ईश्वर ने किस-किस का उद्धार किया हैं?

) सेना, पद्मानभ, तुकाराम, एकनाथ

) तुलसीदास, सूरदास, कबीर, सेना

) नामदेव, कबीर, तिलोचन, सधना, सेना

) एकनाथ, सूरदास, नामदेव, तिलोचन

10) रैदास जी सारे संतों को क्या कहते है?

) संतों की कृपा से सब संभव है

) प्रभु की कृपा से सब संभव है|

) भक्तों की कृपा से सब संभव है|

) ग्रंथों की कृपा से सब संभव है|

 

उत्तर :- 1)                2)           3)         4)            5)  

             6)               7)          8)         9)             10)  

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प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए|

1) पहले पद में भगवान और भक्त की जिन-जिन चीजों से तुलना की गई है, उनका उल्लेख कीजिए|

उत्तर :- पहले पद में रैदास जी ने भगवान के साथ खुद की तुलना कुछ इस प्रकार की है-

भगवान की चंदन से और भक्त की पानी से

भगवान की बादल से और भक्त की मोर से

भगवान की दीपक से और भक्त की बाती से

भगवान की मोती से और भक्त की धागे से

भगवान की स्वामी से और भक्त की दास से

       इस प्रकार रैदास जी ने भगवान और भक्त की तुलना की है|

 

2) पहले पद की प्रत्येक पंक्ति के अंत में तुकांत शब्दों के प्रयोग से नाद-सौंदर्य आ गया है, जैसे- पानी, समानी आदि| इस पद में से अन्य तुकांत शब्द छाँटकर लिखिए|

उत्तर :- मोरा – चकोरा

      बाती – राती

      धागा – सुहागा

      दासा – रैदासा |

 

3) पहले पद में कुछ शब्द अर्थ की दृष्टि से परस्पर संबद्ध हैं| ऐसे शब्दों को छाँटकर लिखिए –

उत्तर :- दीपक ---------- बाती

       चंदन ---------- पानी

      घन -------------- मोर

      मोती ------------- धागा

      स्वामी ------------ दास  

 

4) दूसरे पद में कवि ने ‘गरीब निवाजु’ किसे कहा है? स्पष्ट कीजिए|

उत्तर :- रैदास जी के दूसरे पद में रैदास जी ने अपने आराध्य (ईश्वर) को ही गरीब निवाजु कहा है| क्योंकि वे गरीबों का उद्धार करते है, गरीबों पर उनकी कृपादृष्टि रहती है, गरीबों को वे सम्मानित करते है, इसलिए कवि ने ईश्वर को गरीब निवाजु (गरीबों पर दया करने वाला) कहा है|

 

5) दूसरे पद की ‘जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै’  इस पंक्ति का अक्षय स्पष्ट कीजिए|

उत्तर :- कवि इस पंक्ति द्वारा कहना चाहते है कि, जगत में छुआछूत का भेद पनप रहा है, इस कारण निम्न जाती के लोगों को अछूत कहकर उनका तिरस्कार किया जाता है| परंतु कवि के ईश्वर इस प्रकार निम्न जाती के भक्तों का तिरस्कार नहीं करते बल्कि उनकी हालत पर वे द्रवित हो उठाते है तथा उनपर अपनी कृपादृष्टि रखते है|

 

6) ‘रैदास’ ने अपने स्वामी को किन-किन नामों से पुकारा है?

उत्तर :- इन पदों के माध्यम से रैदास जी ने अपने आराध्य के साथ अपनी तुलना की है| उनका मानना है कि, ईश्वर कहीं बाहर मंदिर या मस्जिद में नहीं बल्कि अपने अंतस में विराजमान है| इसलिए वह अपने प्रभु के साथ बात करके उन्हें अलग-अलग नामों से पुकारते है| रैदास जी ने अपने स्वामी को राम, चंदन, घन, दीपक मोती स्वामी आदि नामों से पुकार है|

 

7) निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए|

उत्तर :- मोरा ------------- मोर, मयूर

      चंद  -------------- चाँद

      बाती --------------- बाती , बत्ती

      जोति --------------- ज्योति

      बरै   --------------- जालना, बढ़ाना

      राती  --------------- रात्रि

      छत्रु  ---------------- छाता

      धरै  ---------------- पकड़ना

      छोति --------------- छुआछूत, अस्पृश्यता

      तुहीं  --------------- तुम ही

      गुसईआ ------------ गोस्वामी, स्वामी, श्रीकृष्ण

 

प्रश्न 3. नीचे लिखी पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए-

(क) जाकी अँग-अँग बास समानी

उत्तर :- रैदास जी अपने प्रभु को चंदन बनने के लिए कहते है और वे खुद पानी बनना चाहते है| जब चंदन को पानी के साथ घिसा जाएगा तब चंदन की सारी खुशबू पानी में घुल-मिल जाएगी| उसी प्रकार कवि भी ईश्वर भक्ति में घुल-मिल जाना चाहते है| अर्थात कवि अपने आराध्य के सुमिरन में पूरी तरह से तल्लीन होकर भक्ति करते हैं|

 

(ख) जैसे चितवत चंद चकोरा।

उत्तर :- रैदास जी अपने प्रभु को घन बनने के लिए कहकर वे खुद मोर बनना चाहते है| जिस प्रकार चकोर पक्षी चाँद को एकटक देखकर अपनी प्यास बुझाता है, उसी प्रकार कवि भी घन बनकर आए अपने आराध्य को मोर बनकर चकोर की तरह एकटक देखकर अपनी भक्ति की प्यास पूरी करना चाहते है|

 

(ग) जाकी जोति बरै दिन राती।

उत्तर :- रैदास जी अपने प्रभु को दीपक बनने के लिए कहकर वे खुद बाती बनना चाहते है| जिस प्रकार दीपक में बाती जलती रहती है उसी प्रकार रैदास जी भी अपने ईश्वर की भक्ति में दिन-रात जालना चाहते है| अर्थात रैदास जी दिन-रात अपने ईश्वर की भक्ति करना चाहते है|

 

 (घ) ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै

उत्तर :- रैदास जी अपने ईश्वर को सबसे महान और शक्तिशाली समझते है| जो काम कवि के ईश्वर ने कवि के लिए तथा कवि के समान लोगों के लिए किया है वह काम अन्य कोई भी नहीं कर सकता| इसलिए कवि कहते है कि इस प्रकार का काम तुम्हारे बिना कोई नहीं करेगा|

(ङ) नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते डरै।।

उत्तर :-  रैदास जी अपने ईश्वर को गरीब निवाजु कहते है, वे गरीबों का उद्धार करते है| गरीब तथा निम्न जाती के भक्तों पर अपनी कृपादृष्टि रखते है| जगत के लोग छुआछूत परंपरा का पालन करते है परंतु रैदास जी के ईश्वर इन्हीं अछूत भक्तों को उच्च दर्जा देते है, उन्हें सम्मानित करते है| इस प्रकार का काम करते समय वे किसी-से भी नहीं डरते| अर्थात कवि के ईश्वर बहुत शक्तिशाली और कृपालु है|

 

प्रश्न 4. रैदास जी के इन पदों का केंद्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए|

उत्तर :-  रैदास जी के प्रथम पद की बात करें तो रैदास जी को अपने प्रभु के नाम की रट लग गई है| ईश्वर के बिना उन्हें किसी बात की खबर नहीं है| हर चीज में वे अपने प्रभु को ही देखते है| हर प्रकार से वे अपने ईश्वर के साथ जुड़े रहना चाहते है| उनसे अलग रहने की वे कल्पना तक नहीं कर सकते|

      दूसरे पद में कवि ने अपने आराध्य की शक्ति और महानता बताई है| कवि के आराध्य ने बहुत ही महान कार्य किए है, ज्यों कोई अन्य नहीं कर सकता| कवि के ईश्वर ने गरीबों का उद्धार किया है और उन्हें समाज में ऊँचा स्थान दिया है| ईश्वर भक्ति करने वालों का उद्धार ही होगा|

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