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रस – परिभाषा, भेद और उदाहरण | Hindi Vyakaran 'Ras' - Paribhasha, Bhed, aur Udaharan

 रस – परिभाषा, भेद और उदाहरण

हिंदी व्याकरण रस  – Ras in Hindi

Hindi Vyakaran Ras

Hindi vyakaran Ras

By Apani Bhasha

    यहाँ पर आप को रस कि परिभाषा, भेद तथा उदाहरण सरल भाषा में उपलब्ध कराने का प्रयास किया गया है| यदि आप को यह ब्लॉग पसंद आए तो सबस्क्राइब करें तथा इसे शेयर जरूर करें| (ब्लॉग लिंक कॉपी करें)

रस – 

सजीव प्राणियों के ह्रदय में अनेक प्रकार की भाव-भावनाएँ मौजूद होती है| अलग-अलग प्रसंगों के हिसाब से ह्रदय की भावनाओं को अलग-अलग नामों से जाना जाता है| जैसे – कविता या गीत पढ़ने-सुनने से तथा किसी प्रसंग को देखने-सुनने से ह्रदय में मौजूद आनंद, दुख, क्रोध, विस्मय, शृंगार, हास्य आदि के भाव जाग्रत होते है, इसी भावनात्मक बोध को ‘रस’ कहा जाता है|

रस कि परिभाषा –

1) अलग-अलग प्रसंगों को देखकर-सुनकर ह्रदय में मौजूद भाव-भावनाओं का जाग्रत होना ही ‘रस’ कहलाता है|

2) मन की भावनाओं के प्रकटीकरण को ‘रस’ कहा जाता है|

रस कि परिभाषा सबसे पहले लिखने का श्रेय भरतमुनी को जाता है| उन्होंने अपने ‘नाट्यशास्त्र’ ग्रंथ में रस कि परिभाषा इस प्रकार की है –

विभावानुभाव व्यभिचारी-संयोगद्रसनिष्पत्ति अर्थात विभाव, अनुभाव तथा संचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति (उत्पत्ति) होती है|

रस के अंग –

रस के चार अंग होते हैं इन अंगों के संयोग से ही रस उत्पन्न होता है|

1) स्थायी भाव

2) विभाव – i) आलंबन विभाव

          ii) उद्दीपन विभाव

3) व्यभिचारी (संचारी भाव)

4) अनुभाव


रस के अंग और उनका अर्थ -

स्थायी भाव : मन में पहले से ही स्थित भावों को स्थायी भाव कहते है|

आलंबन    : जिस व्यक्ति या वस्तु को हम देख रहे है वह व्यक्ति या वस्तु

उद्दीपन    : आलंबन की कलाएँ

संचारी भाव : आलंबन को देखने के बाद मन में जाग्रत होने वाले भाव 

अनुभाव    : रस निष्पत्ति के बाद पाठक या श्रोता की शारीरिक क्रियाएँ

 

रस को काव्य कि आत्मा माना जाता है| रस के कारण ही कविता पढ़ते-सुनते समय और नाटक के अभिनय से देखने-सुनने वाले लोगों को आनंद मिलता है| रस से जिस भाव कि अनुभूति होती है उसे स्थायी भाव कहा जाता है|

1) विभाव – जो व्यक्ति तथा पदार्थ अन्य व्यक्ति के ह्रदय के भावों को जाग्रत करते है उस व्यक्ति तथा पदार्थ को ‘विभाव’ कहते हैं|

विभाव के प्रकार –

i) आलंबन विभाव - जिस व्यक्ति या वस्तु को हम देख रहे है वह व्यक्ति या वस्तु

ii) उद्दीपन विभाव - आलंबन की कलाएँ

2) अनुभाव – ह्रदय में उत्पन्न भावों को व्यक्त करने के लिए शरीर द्वारा जो प्रतिक्रियाएँ दी जाती है उन्हें ही ‘अनुभाव’ कहते हैं|

अनुभाव के प्रकार –

i) स्तंभ

ii) स्वेद

iii) रोमांच

iv) स्वर-भंग

v) कंप

vi) विवर्णता

vii) अश्रु

viii) प्रलय

3) संचारी भाव – जो ह्रदय के भावों के साथ संचरण करते है उन्हें संचारी भाव कहते हैं| संचारी भाव कि संख्या 33 मानी जाती हैं|

4) स्थायी भाव – स्थायी भाव का अर्थ होता है मुख्य भाव| रस के मूल में स्थायी भाव होता है| रस से जिस भाव कि अनुभूति होती है उसे स्थायी भाव कहा जाता है| हर एक रस के मूल में स्थायी भाव होता है इसलिए जीतने रस उतने स्थायी भाव होते हैं| स्थायी भाव हमारे मन में पहले से ही स्थित होते हैं|

रस के भेद -

हिंदी साहित्य में रस के नौ भेद किए गए हैं|

कालांतर में इसमें 'वात्सल्य' रस एवं 'भक्ति' रस को भी शामिल किया गया है| जिसके कारण रसों कि संख्या 11 हो गई|

अ.क्र. रस स्थायी भाव
1 शृंगार रस प्रेम
2 हास्य रस हास
3 शांत रस शांति
4 रौद्र रस क्रोध
5 वीर रस उत्साह
6 करुण रस शोक
7 वीभत्स रस घृणा
8 भयानक रस भय
9 अद्भुत रस आश्चर्य
10 वात्सल्य रस ममत्व
11 भक्ति रस भक्ति

 

1) शृंगार रस – Shringar Ras

किसी भी व्यक्ति या वस्तु का सजना-सवरना 'शृंगार' कहा जाता है| ऐसी साज-सज्जा देखकर मन में उत्पन्न हने वाले मनो भावों को 'शृंगार रस' कहा जाता है| 

नायक तथा नायिका कि प्रेमपूर्ण चेष्टाओं के तथा क्रिया-कलापों के शृंगारिक दृश्य को देखकर मन में उत्पन्न होने वाले भावों को ‘शृंगार रस’ कहा जाता है|  

सौन्दर्य तथा प्रेम संबंधी वर्णन से मन में निर्मित मनोभाओं को 'शृंगार रस' कहा जाता है|

शृंगार रस को रसों का राजा कहा जाता है| इसका स्थायी भाव प्रेम (रति) होता है|

शृंगार रस के अंग –

स्थायी भाव रति / प्रेम
संचारी भाव हर्ष, जड़ता, अभिलाषा, चपलता, उन्माद, स्मृति, आवेग
आलंबन नायक और नायिका
उद्दीपन आलंबन का सौंदर्य, प्रकृति, रमणीय दृश्य, वसंत ऋतु, भ्रमर-गुंजन
अनुभाव अवलोकन, स्पर्श, आलिंगन, कटाक्ष, अश्रु आदि ..

उदाहरण –

i) कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात|

   भरे भौन में करत हैं, नैननु ही सौ बात||

ii) भूषण बसन बिलोकत सिय के|

   प्रेम विवस मन, कंप पुलक तनु

   नीरज नयन नीर भरे पिय के|

   सकुचत, कहत, सुमिरि उर उमगत

   सील सनेह सगुन गुन तिय के|


iii) दूलह श्री रघुनाथ बने, दुलही सिय सुंदर मंदिर माही|

   गावत गीत सबै मिलि सुंदरि, वेद वहाँ जुरि विप्र पढाहीं|

   राम को रूप निहारति जानकी, कंकन के नग की परछाहीं|

   याते सबै सुधि भूलि गई, कर टेकि रही पल टारत नाहीं|


iv) बतरस-लालच लाल कि मुरली धरी लुकाइ|

   सौंह करैं भौंहनु हँसे, दैन कहैं नटि जाइ|


उपर्युक्त उदाहरणों से शृंगार रस की निष्पत्ति होती है|

2) हास्य रस – hasya ras

हास्य अर्थात मनोरंजन | जब कोई गद्य, पद्य रचना पढ़ते-सुनते समय तथा नाटक को देखते समय मन में हास्य के भाव निर्माण होते है उन्हीं हास्य मनोभावों को ‘हास्य रस’ कहते है|

विभाव, अनुभाव संचारी भाव जब हास्य नामक स्थायी भाव से संयोग पाते हैं तब हास्य रस की निष्पत्ति होती है| इससे मनुष्य के चेहरे पर मुस्कुराहट दिखाई देती है इसे ही हास्य रस कहा जाता है|

हास्य रस के अंग – 

स्थायी भाव हास
संचारी भाव हर्ष, चपलता, उत्सुकता, मोह
आलंबन विकृत कर्म, बात करने वाला, आकार एवं चेष्टाएँ
उद्दीपन आलंबन की अनोखी कृति-आकृति, बातचीत
अनुभाव मुस्कुराहट, खिलखिलाकर हँसना, हँसते-हँसते आँखों से पानी आना, पेट पकड़कर हँसना
  

उदाहरण -

i) बुरे समय को देख कर गंजे तू क्यों रोय|

  किसी भी हालत में तेरा बाल न बाँका होय|


ii) पत्नी खटिया पर पड़ी, व्याकुल घर के लोग

   व्याकुलता के कारण, समझ न पाए रोग

   समझ न पाए रोग, तब एक वैद्य बुलाया

   इसको माता निकली है, उसने यह समझाया

   कह काका कविराय, सुने मेरे भाग्य विधाता

   हमने समझी थी पत्नी, यह तो निकली माता|


उपर्युक्त उदाहरणों से हास्य रस की निष्पत्ति होती है|

 

3) शांत रस – Shant Ras

सत्य ज्ञान तथा वैराग्य कि भावना से जिस रस कि उत्पत्ति होती है उसे शांत रस कहा जाता है|

ईश्वर के सत्य स्वरूप का बोध होने पर मन में शांति उत्पन्न होती है| वहाँ मन के अन्य भाव ईर्षा, लोभ, सुख, दुख, द्वेष, क्रोध आदि लुप्त होकर मन शांत हो जाता है| मन में वैराग्य भाव उत्पन्न होने से शांत रस कि निष्पत्ति होती है|

शांत रस के अंग –

स्थायी भाव निर्वेद / वैराग्य
संचारी भाव हर्ष, स्मृति, संतोष, मति, आशा, विबोध आदि ..
आलंबन संसार की क्षणभंगुरता, कालचक्र की प्रबलता
उद्दीपन जीवन की अनित्यता, सत्संग, धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन, तीर्थाटन
अनुभाव स्वार्थ त्याग, नियम-संयम, सत्संग करना, भगवान का भजन गाना, तीर्थाटन करना आदि ..
 

उदाहरण -

i) जब मैं था तब हरि नाहिं अब हरि है मैं नाहिं|

  सब अँधियारा मिट गया जब दीपक देख्या माहिं||


ii) माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर|

   कर का मनका डारि कै, मन का मनका फेर||


iii) मन रे तन कागद का पुतला।

   लागै बूँद बिनसि जाए छिन में,  गरब करे क्या इतना॥


iv) मन पछितैहै अवसर बीते।

   दुरलभ देह पाइ हरिपद भजु, करम वचन भरु हीते

   सहसबाहु दस बदन आदि नृप, बचे न काल बलीते॥


उपर्युक्त उदाहरणों से शांत रस की निष्पत्ति होती है|


4) रौद्र रस Raudra  Ras –

      जब कोई दूसरा आप से या आप के प्रियजनों से भली-बुरी बात करता है तो आप के मन में क्रोध उत्पन्न हो जाता है इससे मुख लाल होना, दाँत पिसना, भौहें चढ़ाना, शस्त्र उठाना, आक्रमण करना आदि के भाव उत्पन्न होते है| शरीर की इन्हीं प्रतिक्रियाओं के भाव को ‘रौद्र रस’ कहते है|

रौद्र रस के अंग –

स्थायी भाव क्रोध
संचारी भाव तिरस्कार, ईर्षा, उग्रता, घृणा, उन्माद, आवेग, चपलता आदि
आलंबन शत्रु या अनुचित कार्य करने वाला
उद्दीपन शत्रु का जोश
अनुभाव इससे मुख लाल होना, दाँत पिसना, भौहें चढ़ाना, शस्त्र उठाना, आक्रमण करना, गलियाँ देना, आवेग भरे वचन बोलना, मुट्ठी खींचना, क्रोध सूचक वचन बोलना आदि ..
 

उदाहरण –

i) कृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्रोध से जलने लगा|

  सब शोक अपना भूलकर, करतल युगल मलने लगे|

  संसार देखे अब हमारे शत्रु रण में मृत पड़े|

  करते हुए यह घोषणा, वे हो गए उठकर खड़े|

  उस काल मारे क्रोध के, तन कांपने उनका लगा|

  मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा|

 

ii) अतिरस बोले वचन कठोर

   बेगि देखाउ मूढ़ नत आजू

   उलटउँ महि जहँ जग तवराजू

 

iii) सुनत लखन के बचन कठोर |

   परसु सुधरि धरेउ कर घोरा |

   अब जनि देर दोसु मोहि लोगु |

   कटुबादी बालक बध जोगु | 


उपर्युक्त उदाहरणों से रौद्र रस की निष्पत्ति होती है|

 

5) वीर रस  Vir Ras

     साहस पूर्ण कारनामों (युद्ध तथा कठिन कार्य) को करते समय ह्रदय में जिस जोश, उत्साह, शौर्य आदि मानसिक भावों की उत्पत्ति होती है उस भावनिक बोध को ‘वीर रस’ कहते है|

वीर रस के अंग –

स्थायी भाव उत्साह
संचारी भाव तिरस्कार, हर्ष, उत्सुकता,गर्व, उग्रता, उन्माद, आवेग, चपलता आदि
आलंबन शत्रु या अनुचित कार्य करने वाला
उद्दीपन शत्रु का जोश, शत्रु का अहंकार
अनुभाव रोमांच, कंप, गरवपूर्ण उक्ति, प्रहार करना, शस्त्र चलना, आक्रमण करना आदि ..
 

उदाहरण –

i) मैं सत्य कहता हूँ सखे! सुकुमार मत जानो मुझे।

   यमराज से भी युद्ध में प्रस्तुत सदा जानो मुझे।।

   हे सारथे! हैं द्रोण क्या? आवें स्वयं देवेन्द्र भी।

   वे भी न जीतेंगे समर में आज क्या मुझसे कभी।।


ii) बुंदेले हर बोलो के मुख हमने सुनी कहानी थी।

   खूब लड़ मर्दनी वो तो झाँसी वाली रानी थी।।


iii)   "वह खून कहो किस मतलब का जिसमें

उबल कर नाम न हो"

"वह खून कहो किस मतलब जो देश के

काम ना हो"

वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।

सामने पहाड़ हो कि सिंह की दहाड़ हो।

तुम कभी रुको नहीं, तुम कभी झुको नहीं॥


iv) तनकर भाला यूँ बोल उठा, राणा मुझको विश्राम न दे|

    मुझको वैरी से ह्रदय-क्षोभ तू तनिक मुझे आराम न दे||

 

उपर्युक्त उदाहरणों से वीर रस की निष्पत्ति होती है|

 

6) करुण रस Karun Ras –

     कसी व्यक्ति, वस्तु या प्राणी के दर्द अथवा उसकी बुरी हालत को देखकर ह्रदय शोक से भर उठता है उस समय जिन मानसिक भावों की उत्पत्ति होती है उस भावनिक बोध को ‘करुण रस’ कहते है|

करुण रस के अंग –

स्थायी भाव शोक
संचारी भाव मोह, जड़ता, दैन्य, ग्लानि, दर्द, लोभ, विषाद, निर्वेद आदि
आलंबन दयनीय व्यक्ति, वस्तु अथवा प्राणी
उद्दीपन दयनीय व्यक्ति, वस्तु अथवा प्राणी का दर्द, दाहकर्म
अनुभाव रुदन, प्रलाप, मूर्छा, दैवनिंदा, कंप, छाती पीटना, व्याकुलता आदि..
 

 उदाहरण –

i)   भीतर जो डर रहा छिपाए,

हाय! वही बाहर आया|

एक दिवस सुखिया के तनु को

ताप-तप्त मैंने पाया|

ज्वर में विव्हल हो बोली वह,

क्या जानूँ किस डर से डर,

मुझको देवी के प्रसाद का

एक फूल ही दो लाकर|


ii)   राम-राम कहि राम कहि, राम-राम कहि राम|

तन परिहरि रघुपति विरह, राउ गयउ सुरधाम||


iii)   अंतिम बार गोद में बेटी,

     तुझको ले न सका मैं हा!

     एक फूल माँ का प्रसाद भी

     तुझको दे न सका मैं हा!


उपर्युक्त उदाहरणों से करुण रस की निष्पत्ति होती है|

 

7) वीभत्स रस  Vibhats Ras

     जिन व्यक्ति, अथवा प्राणी की रक्त मांस युक्त दुर्दशा को देखकर या उसके बारे में विचार करके मन में घृणा उत्पन्न होती है उसी समय मन में जिन भावों की निष्पत्ति होती हैं उसे ही ‘वीभत्स रस’ कहते है|

वीभत्स रस के अंग –

स्थायी भाव जुगुप्सा
संचारी भाव तिरस्कार, आवेग, दैन्य, ग्लानि, व्याधि, मरण, आदि
आलंबन घृणित व्यक्ति, प्राणी, रक्त, मांस आदि..
उद्दीपन घृणित व्यक्ति, वस्तु अथवा प्राणी का दुर्गंध इत्यादि
अनुभाव मुँह बिगाड़ना, थूकना, नाक बंद करना, आँखें बंद करना इत्यादि..
 

उदाहरण –

i)    सिर पर बैठ्यो काग, आँख दोउ खात निकारत।

खींचत जीभहिं स्यार अतिहिं आनंद उर धारत।

गिद्ध जाँघ को खोदि-खोदि कै माँस उपारत,

स्वान आँगुरिन काटि-काटि कै, खात बिदारत।


ii)   "विष्टा पूय रुधिर कच हाडा

बरषइ कबहुं उपल बहु छाडा"


iii)   आँखे निकाल उड़ जाते, क्षण भर उड़ कर आ जाते

शव जीभ खींचकर कौवे, चुभला-चभला कर खाते

भोजन में श्वान लगे, मुरदे थे भू पर लेटे

खा माँस चाट लेते थे, चटनी सम बहते बहते बेटे


उपर्युक्त उदाहरणों से वीभत्स रस की निष्पत्ति होती है|


8) भयानक रस Bhayanak Ras

     भय उत्पन्न करने वाली स्थिति, घटना देखकर अथवा सुनकर तथा बलशाली शत्रु के विद्रोही रूप से मन में भय की उत्पत्ति होती है उस समय मन में निर्मित भाव बोध को ‘भयानक रस’ कहते है|

भयानक रस के अंग –

स्थायी भाव भय
संचारी भाव शोक, घृणा, निराशा, किंकर्तव्यमूढ़ता, अपस्मार, चिंता, आवेग, दैन्य, ग्लानि, व्याधि, त्रास आदि
आलंबन हिंसक जीव जंतु, बलशाली अन्यायकारी व्यक्ति , पाप या पाप -कर्म आदि..
उद्दीपन शत्रुओं या हिंसक जीवों की चेष्टाएँ , निर्जन स्थान इत्यादि
अनुभाव कंपन, स्वेद, रोमांच, चीखना, भगवान का स्मरण इत्यादि..
 

उदाहरण –

i)    कैधों व्योम बीधिका भरे हैं भूरि धूमकेतु,

वीर रस वीर तरवारि सी उधारी है।

 

ii)   उधर गरजति सिंधु लड़रियां

कुटिल काल के जालो सी।

चली आ रही फेन उगलती

फन फैलाए व्यालों सी।।

 

iii)   एक ओर अजगरहि लखि एक ओर मृगराय

बिकल बटोही बीच ही परयो मूर्छा खाय।।


उपर्युक्त उदाहरणों से भयानक रस की निष्पत्ति होती है|

   

9) अद्भुत रस  Adbhut Ras -  

      जब किसी आश्चर्यजनक अथवा विचित्र चीज-वस्तु को देखकर व्यक्ति के मन में विस्मय तथा आश्चर्य भाव की निष्पत्ति होती है तब मन में निर्मित भाव बोध को अद्भुत रस कहते है|

अद्भुत रस के अंग –

स्थायी भावआश्चर्य
संचारी भाव उत्सुकता, आवेग, मोह, भ्रांति, धृति , हर्ष आदि
आलंबनविस्मय तथा आश्चर्य निर्माण करने वाली वस्तु, पदार्थ
उद्दीपनअलौकिक वस्तुओं का दर्शन, श्रवण इत्यादि
अनुभाव आँखें फाड़कर देखना, दांतो तले उंगली दबाना, काँपना, गदगद होना इत्यादि..
 

उदाहरण –

i)    बिनु पग चलै, सुनै बिनु काना|

कर बिनु कर्म करे विधि नाना|

आनन रहित सकल रस भोगी|

बिनु बाणी वक्ता, बड़ जोगी|


ii)   देख यशोदा शिशु के मुख में, सकल विश्व की माया,

     क्षणभर को वह बनी अचेतन, हिल न सकी कोमल काय|


iii)   लीन्हों उखारि पहार बिसाल, चल्यो तेहि काल, विलंब न लायौ|

     मारुतनंदन मारुत को, मन को, खगराज को बेग लजायौ|

     तीखी तुरा तुलसी कहतो, पै हिए उपमा को समाउ न आयो|

     मानो प्रतच्छ परब्बत की नभ लोक लसी कपि यों धुकि धायो|


उपर्युक्त उदाहरणों से अद्भुत रस की निष्पत्ति होती है|

 

10) वात्सल्य रस Vatsalya Ras –

     छोटे-छोटे बच्चों की मन लुभावन क्रीड़ाओं को देखने पर मन में जो उनके प्रति स्नेह का भाव जाग्रत होता है उसे ही वात्सल्य रस कहते है|

वात्सल्य रस के अंग –

स्थायी भाव स्नेह / प्रेम
संचारी भाव हर्ष, गर्व, अभिलाषा, हास, चिंता, शंका, विस्मय, आवेग आदि….
आलंबन छोटे बालक
उद्दीपन छोटे बालक की मन लुभावन चेष्टाएँ इत्यादि
अनुभाव आलिंगन, चुंबन, स्पर्श, मुग्धवस्था, आश्रय की चेष्टाएँ, प्रसन्नता का भाव इत्यादि..
 

उदाहरण –

i)    कबहूँ ससि माँगत आरि करैं, कबहूँ प्रतिबिंब निहारि डरैं|

कबहूँ करताल बजाइ के नाचत, मातु सबै मन मोद भरैं|

कबहूँ रिसिआइ कहैं हटी कै, पुनि लेत सोई जेहिं लागि अरै|

अवधेश के बालक चारि सदा, तुलसी मन-मंदिर में बिहरैं||


ii)   ठुमक चलत रामचंद्र वाजत पैंजनिया|


iii)  किलकत कान्ह घुटरुवन आवत|

मनिमय कनक नन्द के आँगन|

विम्ब फकरिवे घावत|


उपर्युक्त उदाहरणों से वात्सल्य रस की निष्पत्ति होती है|

   

11) भक्ति रस   Bhakti Ras –

     जहाँ मन में ईश्वर अथवा अपने किसी इष्ट देव के प्रति जो सात्विक भाव, श्रद्धा, अलौकिकता, स्नेह तथा विनयशीलता के भाव उत्पन्न होते है, वहाँ भक्ति रस की निष्पत्ति होती है|

भक्ति रस के अंग –

स्थायी भाव आराध्य के प्रति रति / अनुराग
संचारी भाव भक्ति भावना
आलंबन ईश्वर, गुरु, साधु, सन्यासी, माता-पिता आदि
उद्दीपन तीर्थक्षेत्र, ईश्वर की मूर्ति, प्रतिमा आदि
अनुभाव शरणागत होना, समर्पित होना, शरीर को ढीला छोड़ देना इत्यादि
 

उदाहरण –

i)    जल में कुम्भ, कुम्भ में जल है, बाहर भीतर पानी|

     फूटा कुम्भ, जल जलही समाया, इहे तथ्य कथ्यो ज्ञायनी||


ii)   मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई|

जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई||


iii)   समदरसी है नाम तिहारो, सोई पार करो|

     एक नदिया इक नार कहावत, मैलो नीर भरो|

     एक लोहा पूजा में राखत, एक घर बधिक परो|

     सो सुविधा पारस नहीं जानत, कंचन करत खरो||


iv)   तू दयालु दीन हौं, तू दानि हौं भिखारी|

     हौं प्रसिद्ध पातकी, तू पाप पुंज हारी||


उपर्युक्त उदाहरणों से भक्ति रस की निष्पत्ति होती है|

 

इस प्रकार यहाँ हमने रस के ग्यारह भेद, ग्यारह रसों के अंग तथा ग्यारह रसों के उदाहरणों का अध्ययन किया|

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