शब्दालंकार |
---|
Hindi Vyakaran – Shabdalankar
Shabdalankar |
नमस्ते दोस्तों इस ब्लॉग में हम चर्चा करने वाले है हिंदी व्याकरण के एक विशेष टॉपिक पर जिसका नाम है ‘अलंकार’| इस टॉपिक में हम अलंकार की परिभाषा, उसके मुख्य भेद तथा उपभेदों के बारे में बात करेंगे|
तो चलिए सबसे पहले हम अलंकार की परिभाषा तथा अलंकार के मुख्य भेदों को समझ लेते है|
वैसे तो अलंकारों का कविता में विशेष महत्व होता है| अलंकार का सरल अर्थ ‘आभूषण’ अर्थात ‘गहना’ होता है| जिस प्रकार एक स्त्री के शरीर पर परिधान किए गए अलंकार उस स्त्री का सौंदर्य बढ़ाते है उसी प्रकार साहित्य में अलंकार काव्य का सौंदर्य बढ़ाते है| साहित्य में अलंकार काव्य में चमत्कार और रोचकता निर्माण करते हैं| इससे काव्य का सौंदर्य द्विगुणित हो जाता है| अलंकार शब्द और अर्थ से भाषा को सुसज्जित तथा समृद्ध बनाने का कार्य करते है| पाठक के मन में रोचकता निर्माण करते है इसलिए साहित्य में अलंकार का स्थान सर्वोपरी है|
अलंकार की परिभाषा –
1) “शब्द और अर्थ की दृष्टि से काव्यांश तथा वाक्यांश का सौंदर्य बढ़ाने वाले तत्व को ‘अलंकार’ कहते है|
2) “अलंकरोति इति अलंकार:” – जो अलंकृत करता है वही अलंकार है|
अलंकार के भेद –
अलंकार को व्याकरण शास्त्रियों ने उनके गुणों के आधार पर तीन भागों में विभाजित किया है| इसमें -
1) शब्दालंकार
2) अर्थालंकार
3) उभयालंकार
सबसे पहले हम शब्दालंकार की परिभाषा तथा शब्दालंकार के भेदों का अध्ययन करेंगे|
शब्दालंकार की परिभाषा –
“शब्दों के सौंदर्यपूर्ण प्रयोग से काव्यांश तथा वाक्यांश में चमत्कार तथा रोचकता निर्माण हो जाती है उसे ‘शब्दालंकार’ कहते है|
· 👉 ध्वनि के आधार पार इसकी पहचान होती है|
👉 इसमें लयात्मकता होती है|
👉 शब्दालंकार में प्रयुक्त शब्द का स्थान उसका पर्यायवाची शब्द नहीं ले सकता|
जैसे – “चारु चंद्र की चंचल किरणें, खेल रही थी जल थल में”
इस उदाहरण में ‘च’ वर्ण की आवृत्ती हो रही है| इससे उच्चारण में एक लय उत्पन्न होती है| अतः इस उदाहरण में शब्दालंकार स्थित है|
शब्दालंकार के भेद
अलंकार के छः भेद होते है -
1) अनुप्रास अलंकार
2) यमक अलंकार
3) श्लेष अलंकार
4) वक्रोक्ति अलंकार
5) पुनरोक्ति अलंकार
6) विप्सा अलंकार
तो चलिए एक-एक करके हम 'शब्दालंकार' के सभी भेदों को समझकर लेते है| शब्दालंकार का पहला भेद है-
1) अनुप्रास अलंकार –
अनुप्रास शब्द का अर्थ – ‘अनु’ का मतलब अनुकरण करना अर्थात आवृत्ति करना| अनुप्रास का मतलब वर्णों की आवृत्ति|
परिभाषा – “जिस अलंकार में वर्णों की आवृत्ति से काव्य का सौंदर्य बढ़ जाता हैं वहाँ पर ‘अनुप्रास अलंकार’ होता है|
👉 अनुप्रास अलंकार में एक ही वर्ण की बार-बार आवृत्ति होती है|
जैसे –
1) कंकन किंकिनि नूपुर बाजहिं |
2) “चारु चंद्र की चंचल किरणें, खेल रही थी जल थल में”
पहले उदाहरण में ‘क’ वर्ण की तथा दूसरे उदाहरण में ‘च’ वर्ण की आवृत्ति हुई है इससे काव्य पंक्ति में एक लय आने से उसका सौंदर्य बढ़ जाता है| अतः इन काव्य पंक्तियों में अनुप्रास अलंकार का दर्शन होता है|
अनुप्रास अलंकार के अन्य उदाहरण –
1) जाहि अनादि, अनंत, अखंड, अछेद, अभेद सुवेद बतावैं| (‘अ’ वर्ण की आवृत्ति)
2) रघुपति राघव राजा राम| (‘र’ वर्ण की आवृत्ति)
3) कूकै लगी कोयल कदंबन पर बैठी फेरि| (‘क’ वर्ण की आवृत्ति)
4) मुदित महीपति मंदिर आये| सेवक सचिव सुमंत बुलाये| (‘म’ वर्ण की आवृत्ति)
5) तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये| (‘त’ वर्ण की आवृत्ति)
इस प्रकार से अनुप्रास अलंकार को हम समझ सकते है|
अनुप्रास अलंकार के भेद
1) छेकानुप्रास -
2) वृत्यनुप्रास
3) लाटानुप्रास
4) अंत्यानुप्रास अलंकार
5) श्रुत्यानुप्रस
2) यमक अलंकार –
यमक का अर्थ है –काव्य में एक ही शब्द बार-बार आने के बावजूद भी अर्थों की भिन्नता प्रस्तुत करता है उसे यमक कहते है|
परिभाषा – “काव्य में एक ही शब्द की बार-बार आवृत्ति हो परंतु प्रत्येक बार उसका अर्थ भिन्न हो, वहाँ यमक अलंकार होता है|”
जिस प्रकार अनुप्रास अलंकार में किसी एक वर्ण की आवृत्ति होती है उसी प्रकार यमक अलंकार में काव्य सौंदर्य बढ़ाने हेतु एक ही शब्द की बार-बार आवृत्ति होती है परंतु शब्दों के अर्थ भिन्न होते है|
जैसे – “कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय| यहि खाए बौराय नर, उहि पाए बौराय|”
इस काव्य में पहले ‘कनक’ का अर्थ है ‘धतूरा’ तथा दूसरे ‘कनक’ का अर्थ है ‘सोना’| धतूरा खाने से आदमी पागल हो जाता है और ‘सोना’ अर्थात धन, अधिक धन मिलने पर भी मनुष्य पागल हो जाता है| इस काव्य में एक ही शब्द की आवृत्ति हुई है परंतु उनके अर्थ भिन्न होने के कारण यहाँ यमक अलंकार बन जाता है|
यमक अलंकार के अन्य उदाहरण –
1) “काली घटा का घमंड घटा|”
यहाँ पहले ‘घटा’ शब्द का अर्थ ‘बादल’ तथा दूसरे ‘घटा’ शब्द का अर्थ ‘घट जाना’ अर्थात ‘घटना’ है|
2) “माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर| कर का मनका डारि दै, मन का मनका फेर||”
यहाँ पहले ‘मनका’ शब्द का अर्थ ‘माला का मोती’ अर्थात ‘मणि’ तथा दूसरे ‘मन का’ शब्द का अर्थ ‘मन की भावना’ अर्थात ‘ह्रदय का’ है|
3) “तीन बेर खाती थी वे तीन बेर खाती है|”
यहाँ पहले ‘बेर’ शब्द का अर्थ ‘बार’ अर्थात ‘समय’ तथा दूसरे ‘बेर’ शब्द का अर्थ ‘बेरी का फल’ है|
4) “कहै कवि बेनी बेनी ब्याल की चुराई लीनी”
यहाँ पहले ‘बेनी’ शब्द का अर्थ ‘कवि स्वयं’ अर्थात इससे कवि की तरफ संकेत है तथा दूसरे ‘बेनी’ शब्द का अर्थ ‘चोटी’ है|
5) “पास ही रे हीरे की खान खोजता कहाँ और नादान?”
यहाँ पहले ‘ही रे’ शब्द का अर्थ ‘होना’ तथा दूसरे ‘हीरे’ शब्द का अर्थ ‘हीरा’ अर्थात आभूषण है|
इस प्रकार से यमक अलंकार को हम समझ सकते है|
यमक अलंकार के दो भेद किए गए है-
1) अभंग पद यमक
2) सभंग पद यमक
3) श्लेष अलंकार –
श्लेष का अर्थ है – संयोग, मिला हुआ, चिपका हुआ
परिभाषा – “जिस काव्य में अथवा वाक्य में एक ही शब्द दो या दो से अधिक अर्थ में आता है उसे ही ‘श्लेष अलंकार’ कहते है|”
श्लेष का अर्थ संयोग या चिपका हुआ ऐसा होता है मतलब काव्य में कुछ शब्द ऐसे होते है जिनके अनेक अर्थ होते है अर्थात उन शब्दों को दो या दो से ज्यादा अर्थ चिपके हुए होते हैं|
जैसे – “नवजीवन दो घनश्याम हमें|”
इस उदाहरण में ‘घनश्याम’ शब्द दो अर्थ में आया है| एक अर्थ ‘काले बादल’ तथा दूसरा अर्थ ‘श्रीकृष्ण’ है अतः यहाँ श्लेष अलंकार है|
श्लेष अलंकार के अन्य उदाहरण –
1) माया महाठगिनि हम जानी| तिरगुन फाँस लिए कर डोलै, बोलै मधुरी बानी|
इस उदाहरण में ‘तिरगुन’ शब्द दो अर्थ में प्रयुक्त हुआ है| एक अर्थ ‘तीन गुण- सत्व, रजस्, तमस्’ और दूसरा अर्थ है ‘तीन धागों वाली रस्सी’ इस प्रकार हैं| अतः यहाँ पर श्लेष अलंकार की योजना हुई है|
2) चरण धरत चिंता करत, फिर चितवत चहुँ ओर| ‘सुबरन’ को ढूढत फिरत, कवि, व्यभिचारी, चोर||
इस उदाहरण में ‘सुबरन’ शब्द के तीन अर्थ निललते है एक कवि के लिए ‘अछे शब्द’ दूसरा व्यभिचारी के लिए ‘अच्छा रूपरंग’ और तीसरा चोर के लिए ‘स्वर्ण’ इस प्रकार ‘सुबरन’ इस शब्द के तीन अर्थ होने से यहाँ श्लेष अलंकार होता है|
3) मंगन को देखि पट देत बार-बार हैं|
इस उदाहरण में ‘पट’ शब्द दो अर्थ में प्रयुक्त हुआ है| एक अर्थ ‘वस्त्र’ और दूसरा अर्थ है ‘किवाड़’ इस प्रकार हैं| अतः यहाँ पर श्लेष अलंकार की योजना हुई है|
4) “चिरंजीवौ जोरी जुरै, क्यों न सनेह गँभीर| को घटि ये वृषभानुजा, वे हलधर के बीर||”
इस उदाहरण में ‘वृषभानुजा’ शब्द दो अर्थ में प्रयुक्त हुआ है| एक अर्थ ‘वृषभानु की बेटी- राधा’ और दूसरा अर्थ है ‘वृषभ की बहन – गाय ’ इस प्रकार हैं| अतः यहाँ पर श्लेष अलंकार की योजना हुई है|
5) रहिमन पानी रखिए, बिन पानी सब सून| पानी गये न ऊबरै मोती, मनुष, चुन|| - रहीम
इस उदाहरण में ‘पानी’ शब्द तीन अर्थ में प्रयुक्त हुआ है| मोती के लिए ‘कांति’ मनुष्य के लिए ‘प्रतिष्ठा’ और चून अर्थात आटे के लिए ‘जल’ इस अर्थ में आए हैं| अतः यहाँ पर श्लेष अलंकार की योजना हुई है|
इस प्रकार से श्लेष अलंकार को हम समझ सकते है|
श्लेष अलंकार के दो भेद किए गए है-
1) अभंग श्लेष अलंकार
2) सभंग श्लेष अलंकार
4) वक्रोक्ति अलंकार –
वक्रोक्ति का अर्थ है टेढ़ी बात|
वक्रोक्ति अलंकार में बात को घूमा-फिराकर कहा जाता है| इसमें बात करने वाले और सुनने वाले दोनों एक ही शब्द का अपने-अपने तरीके से अलग-अलग अर्थ निकालते है| कहने वाले के शब्दों का अर्थ अलग रहता है और सुनने वाला उसे जानबूझकर दूसरे ही अर्थ में लेता है| ऐसे समय वहाँ ‘वक्रोक्ति अलंकार’ होता है|
परिभाषा – “जब किसी काव्य में बात करने वाले की बात का मजाक उड़ाने के उद्देश्य से बात सुनने वाला किसी एक शब्द को दूसरे ही अर्थ में लेता है तब वहाँ ‘वक्रोक्ति अलंकार’ होता है|”
वक्रोक्ति अलंकार के उदाहरण दरअसल दो व्यक्तियों का संवाद होता है|
जैसे – “को तुम? हैं घनश्याम हम, तो बरसो कित जाए| नहिं मनमोहन हैं प्रिये, क्यों पकरत तब पाँय||”
इस उदाहरण में राधा श्रीकृष्ण से कहती है की तुम कौन हो? तो श्रीकृष्ण कहते कि मैं घनश्याम हूँ| तो राधा ने ‘घनश्याम’ शब्द का अर्थ जानबूझकर ‘काले बादल’ लेकर कृष्ण से कहा तो फिर कही जाकर बरसो| तब श्रीकृष्ण फिर कहते है की नहीं प्रिये मेरा नाम ‘मनमोहन’ है तो राधा ‘मनमोहन’ शब्द का अर्थ ‘मन मोहित करने वाला’ लेकर कहती है कि तो फिर कहीं जाकर किसी के पाँव पकड़कर उसे फुसलाएँ|
इस प्रकार इस उदाहरण में बात करने वाले दोनों ने शब्दों के अपने-अपने ढंग से अर्थ लगाकर काव्य में ‘वक्रोक्ति अलंकार’ की सृष्टि की है|
वक्रोक्ति अलंकार के अन्य उदाहरण –
1) “एक कह्यौ वर देत भव भाव चाहिए चित्त| सुनि कह कोउ भोले भवहिं भाव चाहिए मित्त||”
किसी एक ने कहाँ कि, शिव वर देते है लेकिन चित्त में भाव चाहिए| यह बात सुनकर दूसरे ने कहा शिव इतने भोले हैं कि उनको रिझाने के लिए भाव की भी आवश्यकता नहीं| ओ प्रसन्न हो जाते हैं|
2) “स्वारथु सुकृत न, श्रमु वृथा, देखि विहंग विचारि| बाज पराये पानि परि तू पछिनु न मारी||”- बिहारी
इस उदाहरण में बिहारी जी ने जयशाह जो एक हिन्दू होकर भी शाहजहाँ की ओर से हिंदुओं से युद्ध करता था उसे कहाँ कि हे बाज़ – दूसरे लोगों के अहंकार की पूर्ति के लिए तुम अपने ही पक्षियों के साथ अर्थात अपने ही लोगों से (हिन्दू राजाओं से) युद्ध मत करो| मन में सोचो क्योंकि इससे न तुम्हारा कोई स्वार्थ सिद्ध होगा और न ही यह काम शुभ है| तुम व्यर्थ श्रम कर रहे हो|
इस उदाहरण में बिहारी जी ने जयशाह को अपने पक्षियों को न मारने की बात कही है अर्थात अपने लोगों को न मारने की बात कही है|
इस प्रकार से वक्रोक्ति अलंकार को हम समझ सकते है|
वक्रोक्ति अलंकार के भेद
1) श्लेष वक्रोक्ति अलंकार
2) काकु वक्रोक्ति अलंकार
5) पुनरोक्ति अलंकार –
पुनरोक्ति का अर्थ है पुनः + उक्ति अर्थात शब्दों का बार-बार आना| इस अलंकार में भले ही शब्द बार-बार आते हैं परंतु उनका अर्थ भिन्न ना होकर एक ही रहता है|
परिभाषा – "जिस काव्य पंक्ति में शब्दों का प्रयोग दो बार किया जाता है अर्थात एक ही शब्द को दो बार दोहराया जाता है परंतु उन शब्दों का अर्थ एक ही रहता है वहाँ ‘पुनरोक्ति अलंकार’ होता है|
जैसे – “खड़-खड़ करता करताल बजता|”
इस उदाहरण में ‘खड़’ शब्द दो बार आया है परंतु दोनों का अर्थ एक ही है| अतः यहाँ पुनरोक्ति अलंकार है|
पुनरोक्ति अलंकार के अन्य उदाहरण
1) “सुबह-सुबह बच्चे काम पार जा रहे हैं|”
2) “किस इच्छा से लहराकर हो उठा चंचल-चंचल|”
3) “आगे-आगे नाचती गाती बयार चली|”
4) “मधुर वचन कहि-कहि परितोषिं|”
5) “डाल-डाल अली-पिक के गायन का समां बँधा|”
इस प्रकार से पुनरोक्ति अलंकार को हम समझ सकते है|
ConversionConversion EmoticonEmoticon